Friday, February 4, 2022

कविता:आजकल

                     कविता:आजकल

                


यूंही चलते चलते,

बीत गए कुछ हसीन पल |


जो कल थे खयाब,

आज बन गए हमारी पहचान |


कल में था बल,

जो नही है आजकल |


जो था तब एहसास,

अब नही है आसपास |


जो कल नही था,वो थे ख्याब,

जो आज है ,उसमे छुपे है कई राज़ |


सब वक्त की मार है ये आज और कल,

जो थे हम कल ,नही है आज हम |


जो कल थे खयाब,

आज बन गए है पूरी किताब |


कलम भी वो ही,स्याही भी वो ही,

बस बदल गए है कुछ एहसास |

#Women Empowerment:Rise and Thrive